बृहदेश्वर मंदिर, जिसे राजराजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित एक प्राचीन और अद्वितीय हिंदू मंदिर है। यह उत्कृष्ट संरचना दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य की स्थापत्य कला और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्वितीय उदाहरण है। इस मंदिर का निर्माण चोल सम्राट राजराजा चोल प्रथम द्वारा 11वीं शताब्दी में किया गया था और यह विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है।
बृहदेश्वर मंदिर की सबसे खास विशेषता इसका विशाल गोपुरम और भव्य विमाना है। गोपुरम और विमाना की जटिल नक्काशी और उनकी ऊँचाई उस समय की उन्नत इंजीनियरिंग और स्थापत्य क्षमता का परिचय देती है। मुख्य मंदिर के शीर्ष पर स्थित रथ के आकार का शिखर इसकी विशेषता को और बढ़ाता है। यह शिखर एक ही पत्थर से बना हुआ है और इसे आश्चर्यजनक रूप से संतुलित किया गया है।
मंदिर में स्थित विशाल नंदी की मूर्ति का उल्लेख किए बिना इसका वर्णन अधूरा है। यह नंदी की मूर्ति भारत में स्थित सबसे बड़ी नंदी प्रतिमाओं में से एक है और इसे मक्खन पत्थर से बनाया गया है। इस विशाल मूर्ति की कलाकारी सदियों से कला प्रेमियों को आकर्षित करती रही है।
बृहदेश्वर मंदिर में देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियाँ और उत्कीर्ण प्रतिमाएँ हैं, जो चोल राजवंश के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन की गहराई को दर्शाती हैं। मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी में राजा, योद्धा, नर्तकियाँ और संगीतज्ञों के दैनिक जीवन के दृश्य उकेरे गए हैं। ये उत्कीर्णन चोल कला की जीवंतता और उसके सूक्ष्म दृष्टिकोण का प्रतिबिंब हैं।
बृहदेश्वर मंदिर न केवल स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और धार्मिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ भी है। यह मंदिर चोल वंश की उन्नत तकनीकी क्षमताओं और उनकी समर्पण भावना को भी रेखांकित करता है। इसके साथ ही यह पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है, जहाँ प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
बृहदेश्वर मंदिर चोल स्थापत्य की समृद्धता और भव्यता का प्रमाण है और यह अनगिनत कहानियाँ बयाँ करता है जो भारतीय इतिहास के पन्नों में अमिट छाप छोड़ती हैं। यह मंदिर न केवल एक स्थापत्य अद्भुत है, बल्कि यह समय और संस्कृति के माध्यम से छद्म यात्रा का एक सजीव उदाहरण है।